जीवनी/आत्मकथा >> यादों के चिराग यादों के चिरागकमलेश्वर
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यादों के चिराग
Yadon ke Chirag (Kamleshwar)
कमलेशवर ने अपने संस्मरणों का सिलसिला ‘आधारशिलाएँ’ लेखमाला के अन्तर्गत शुरू किया था। पहला खंड ‘जो मैंने जिया’ के नाम से प्रकाशित होते ही चर्चा का विषय बन गया था। इसे पाठकों ने सराहा भी था क्योंकि इन संस्मरणों के माध्यम से उन्हें पिछले 50 वर्षों के हिन्दी साहित्य के विशेषकर हिन्दी कहानी के क्रमिक विकास और सम्बन्धित-साहित्यकारों को निकट से जानने-पहचानने का अवसर मिला था।
‘यादों के चिराग़’ कमलेशवर के नितांत आत्मीय और अंतरंग संस्मरण है जिनमें उन्होंने जो कुछ भी लिखा है पूरी ईमानदारी से। इन संस्मरणों की विशेषता है इनकी बेबाकी और स्पष्टवादिता, जिसमें उन्होंने न अपना आपको बख्शा है और न ही सम्बन्धित पात्रों को।
‘आधारशिलाएँ’ श्रृंखला का यह दूसरा खण्ड आत्मकथा तो है ही, साथ ही कहानी, विशेषकर नई कहानी, का प्रमाणित सफरनामा भी है कमलेशवर की अपनी विशिष्ट रोचक शैली में।
‘यादों के चिराग़’ कमलेशवर के नितांत आत्मीय और अंतरंग संस्मरण है जिनमें उन्होंने जो कुछ भी लिखा है पूरी ईमानदारी से। इन संस्मरणों की विशेषता है इनकी बेबाकी और स्पष्टवादिता, जिसमें उन्होंने न अपना आपको बख्शा है और न ही सम्बन्धित पात्रों को।
‘आधारशिलाएँ’ श्रृंखला का यह दूसरा खण्ड आत्मकथा तो है ही, साथ ही कहानी, विशेषकर नई कहानी, का प्रमाणित सफरनामा भी है कमलेशवर की अपनी विशिष्ट रोचक शैली में।
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